नींव का पत्थर
जिस की कोमल अनुभूति से, श्वांसे धड़क रही हैं, बन के घर के नींव का पत्थर, फिर भी सिसक रही हैं। उसे “एक” दिन प्रेम प्रर्दशन में, दुनिया न समेटे, जो दुनिया को नवजीवन, और देती बेटी बेटे। जाकर कोई समझाओ, दुनिया उनके आंसू पोंछे, तब सार्थकता मातृदिवस की, जब मांओं की पीड़ा सोखे।