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Feeling

जिज्जी

in Stories

A stort about society marriage system

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चंद शेर……!

in poems
Trust

फुर्सत के लिए फुर्सत, तो निकालो यारों! जब वक्त निकल जाएगा, तो खाक मिलेंगे।। हम वैसे तो दुनिया के रवायत से हैं, वाक़िफ। तुम ही ना रहे, इस दुनिया का क्या करें ? तुम आओगे एक दिन तो, मालूम है मुझे, पर मैं ही ना रहूं, उस दिन का क्या करें ?दौलत की जिस ढेर…

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सर्द सर्द रातों में……!

in poems

सर्द सर्द रातों में, दर्द भरी यादों की , महफिलें जब सजती हैं , ओस बिखर जाते हैं , आसमां के रोने में, अश्रु जम से जाते हैं ,आंखों के सोने में , तुम जहां भी जाओगे, दुनिया के कोने में , दूर ना कर पाओगे, मुझ में खुद के होने में ।वक्त ठहर जाता…

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पुण्यात्मा

in Stories

प्राचीन काल में जिन्हे ज्ञान की पिपासा होती थी ,वो कंद मूल फल खाकर सात्विक जीवन जीते थे , उनका काम ज्ञान वर्धन और अर्जन कर समाज को सही दिशा दिखाना था ।दूसरा वर्ग वो था ,जिन्हें युद्ध के लिए शारीरिक बल की आवश्यकता थी ,उनका भोजन दूध दही मांसाहार समेत सभी तरह का स्वादिष्ट…

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बीता ज़माना

in poems

लड़ना झगड़ना या रूठना मनाना , कोई डाँट खाए, तो उसको चिढ़ाना, बहुत याद आता है बीता ज़माना, वो हँसना हँसाना, वो रोना रुलाना । गुज़रता गया, जो पंख लगा के, पलट के न आया, कभी याद आके। बहनों के संग, जो बचपन बिताया, जवानी बितायी ,ज़माना बिताया, बहुत कुछ छिपाया, बहुत कुछ बताया ,…

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प्रलय

in poems

ये आफ़त ये झंझा तूफ़ानों का रेला, कहाँ ले के आया ,ये मरघट का खेला। समझ में न आए ,ये हो क्या रहा है ? प्रकृति का जो ऐसा क़हर हो रहा है ! समय कह रहा है ,जड़ों से जुड़ो तुम, नहीं तो कहीं फिर प्रलय हो ना जाए।

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दुनियादारी

in poems

कुछ नर्म से रिश्तो का ,अधूरा सा फसाना है। ग़र समझ सको ,समझना ,यह दर्द पुराना है। जब साथ हो अधूरा ,तो लोग मचलते हैं। जख्मों पर छिड़कने को, नमक लेकर ही चलते हैं । घर में खुशी हो ,चाहे गम की हवा बही हो। देकर बुलावा घर में ,अनजान से रहते हैं। जब याद…

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जीवन चक्र

in poems

आस-पास बिखरे रंगों में, बादल पर्वत और उपवन में, जीवन विस्तारित होता हर कण में, इनमें गुंजित ध्वनियां देखो क्या कहती है? कहती हैं, हर रंग में जीवन, खिलता ही है, उमड़ घुमड़ कर बादल सा मन, खाली होता। खाली होकर ऊपर उठता, पर्वत सा फिर,और उपवन में, फूलों सा मन, विकसित होता। यही चक्र…

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सूरज

in poems

हर सुबह उम्मीदों का सूरज, उगता ढलता दे जाता है , कुछ स्वप्न नये, कुछ पंख नये, कुछ अरमानों के रंग नये , देता है कुछ संदेश नए , नवजीवन के परिवेश नये, ठिठुरे सिकुड़े मनोभावों को, उष्माओं के कुछ अंश नये। जब नए उम्मीदों का दीपक , बुझने को आतुर होता है, तब सूरज…

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हे नए साल

in poems

सपनों की दीर्घ वीथिका में, अगणित रंगों के इंद्रधनुष, लेकर आए ये नया साल । कुछ हास नए ,उल्लास नए , जीवन के कुछ अभिलाष नए, है पलक पांवड़े बिछे हुए , स्वागत में तोरण सजे हुए, आना तो खुशियां ले आना, दुनिया के आंसू ले जाना, इस वर्ष बहुत तड़पाया है, दुनिया को कितना…

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