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Affection

चाहत

in Stories

मिस्टर बागची रोज़ की तरह भ्रमण के लिए निकले, तो एक छोटा मरियल सा पिल्ला उनके पीछे-पीछे चलता हुआ न जाने कहां से आ गया।बहुत  पीछा छुड़ाने की कोशिश करने पर भी उसने पीछे आना न छोड़ा। तो मिस्टर  बागची ने उसे एक छोटी सी दुकान  जो सुबह-सुबह खोलने की प्रक्रिया में दुकानदार  झाड़ू लगा…

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सर्द सर्द रातों में……!

in poems

सर्द सर्द रातों में, दर्द भरी यादों की , महफिलें जब सजती हैं , ओस बिखर जाते हैं , आसमां के रोने में, अश्रु जम से जाते हैं ,आंखों के सोने में , तुम जहां भी जाओगे, दुनिया के कोने में , दूर ना कर पाओगे, मुझ में खुद के होने में ।वक्त ठहर जाता…

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मां की यादें

in poems

मां तेरी वो यादें, बातों की बरसाते । भीनी सी खुशबू जैसी थी,तेरे आंचल की रातें। यादों की गठरी से, रह-रहकर आ जाती, जीवन की उलझी राहों को, सीख तेरी सुलझाती। मेरे जीवन नैया की,नदी धार बन जाती, तपते थकते जीवन में, बदरी बन छा जाती। कर्मयोग का जादू तूने,कब किससे था सीखा? मुझे सिखा…

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रिश्तों के हिम

in poems

जो मैंने कहा था, वो आप ने सुना नही, जो मैंने कहा नहीं, वो आप ने सुना था। रिश्तों के ये जो बाने हैं, वो हमने खुद ही ताने है। थोड़ा थोड़ा आगे बढ़कर, रिश्तों के हिम को पिघलाएं, मैं थोड़ा सा आगे आऊं, वो थोड़ा सा पीछे जाएं, फिर अपने इस तालमेल को, ये…

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ओ,सखि………!

in poems

बात दिल की तुम अपनी, छुपाया न करो। बात जो भी हो, वो तुम बताया करो। बातों बातों में ही, रूठ जाती हो, दर्द के समंदर में, डूब जाती हो। कभी रेत के सहरा पे भी, आ जाया करो। रेत में भी खिलते हैं, कांटों पे फूल, जिन्हें देखकर उम्मीदें, जगाया करो। हर बात  का…

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मातृदिवस

in poems

मां ,तू पास नहीं पर, मुझमें स्पंदित रहती, मेरे जीवन के हर पग पर, तू प्रतिबिंबित रहती। पता नही, कैसे?पर, तू आभासित रहती। जीवन के हर पथ पर, मुझको परिभाषित करती। आती जाती बाधाओं को, तू बाधित कर जाती, हिचकोले खाते जीवन को, तू ही राह दिखाती। संदर्भित इस मातृदिवस पर, फिर प्रसंग है आया,।…

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अनकही सी बातें

in poems

कुछ अनकही सी बातें, जो कह रही हूं तुमसे, कम को अधिक समझना, ग़र हो सके जो तुमसे। तेरी बात में था मरहम, वो भी था इक ज़माना, अब काम का बवंडर, है व्यस्तता बहाना। प्रश्नो का है समंदर, और दर्द मेरे अंदर, बहने को है आकुल, ये सोच के हूं व्याकुल। परवाह तो है…

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विरहगीत

in poems

तारों की टिमटिम में हो तुम, चिड़ियों की चहचह में हो तुम, गंगा कि कलकल ध्वनि में तुम, नटराज के डमरु की ध्वनि तुम, गुंजित हो सभी दिशाओं में, प्रतिष्ठित हो ह्रदय में तुम। यूं अनायास क्यों चले गए? मुझको तन्हा क्यों छोड़ गए? संगीत की धुन बन लौट आओ, मेरे जीवन में छा जाओ।…

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