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हिंदी भाषा की व्यथा

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मैं हिंदी भाषा हूं ,आजकल कुछ उदास सी रहती हूं, क्योंकि मेरे अपनों ने मेरी परवाह करना छोड़ दिया है। लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था, मैंने जीवन का बेहद सुनहरा दौर भी देखा है ।मैंने महादेवी वर्मा ,जयशंकर प्रसाद और निराला जैसे महान छायावादी कवियों का दौर भी देखा है । वो मेरी खुशनुमा…

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अलाव

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मेरे घर के कोने में रखा हुआ ,धूल-धूसरित सा एक मिट्टी का पात्र ,जिसे मैं अलाव के नाम से जानती थी। अचानक मुझसे बातें करने लगा ,कहने लगा, कि तुम्हें याद है ?वो जाड़े के दिन ,जब तुम अपने खूब सारे भाई बहनों और माता पिता के साथ मेरे इर्द-गिर्द बैठकर घंटों मेरे साथ अपनत्व…

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साझेदारी

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मेरे बाबा ,जिनके गुस्से से घर में मेरी मां और सारे भाई बहन डरते थे ।वो जब किसी बात पर नाराज होते थे ,तो किसी की हिम्मत नहीं होती थी ,कि उन्हें भोजन कक्ष में उन्हे बुला कर ले आए ।मैं घर में सबसे छोटी थी। शायद सबसे निर्भीक भी ,इसलिए जब बाबा गुस्से में…

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हिंदी भाषा की व्यथा

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मैं हिंदी भाषा हूं, आजकल कुछ उदास सी रहती हूं, क्योकि मेरे अपनों ने मेरी परवाह करना छोड़ दिया है ।लेकिन हमेशा ऐसा नहीं था ,मैंने जीवन का बेहद सुनहरा दौर भी देखा है। मैंने महादेवी वर्मा ,जयशंकर प्रसाद और निराला जैसे महान छायावादी कवियों का दौर भी देखा है । वो मेरी खुशनुमा तरुणाई…

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साझेदारी

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ध्यान

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हमलोग उम्र लंबी करने में कामयाब हो गए हैं, लेकिन जीवन को आनंद पूर्ण बनाने में अभी तक अक्षम है। हम लोगों ने ऊंची अट्टालिकाएं  तो बनवा ली, लेकिन मन मंदिर का निर्माण नहीं कर पाए। जहां बैठकर साधना और ध्यान के कुछ पल दे सकें, मानव मन तब तक सुख के लिए भटकता रहेगा,…

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जो जस करि………!

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जब राम के बाणों से धराशाई रावण मरणासन्न था, तब राम ने लक्ष्मण से कहा, कि लक्ष्मण रावण अब कुछ ही देर का मेहमान है, उसके साथ उसका अमूल्य ज्ञान भी समाप्त हो जाएगा। इसके पहले तुम उसके पास जाकर उसके ज्ञान से स्वयं को आलोकित कर लो। जब लक्ष्मण रावण के सिरहाने जाकर खड़े…

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अहिंसा के पुरोधा

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अहिंसा को यदि एक शब्द का महाकाव्य कहा जाए, तो उसके अनेक छंद इसी शब्द से प्रगट हो सकते हैं। महात्मा गांधी अहिंसा का प्रथम मानव छंद है ।गांधी मानवता के अलंकार हैं । 2 अक्टूबर को इस महा मानव ने जन्म लिया था। संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को अहिंसा दिवस भी घोषित किया…

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आत्मानुशासन

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स्वाधीनता सिर्फ एक शब्द नहीं, अनंत प्रतिक्षाओं,अनगिनत बलिदानों ,अतृप्त प्यास से उपजी एक जीवन यात्रा है। जिसमें विराम के लिए समय कहां ?स्वाधीनता के लिए तड़प की अलख यदि हमारे क्रांतिकारियों ने अपने खून देकर जगाई ना होती,तो हम और आप तो होते, लेकिन यह स्वाधीनता की सुगंध कहां होती? इस स्वाधीनता की सुगंध को…

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‘बचपन’ आज और कल

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समय की थोड़ी सी इकाइयो का लेखा-जोखा नहीं, जीवन का सौंदर्य है बचपन ।आज बचपन की मोहक स्मृतियां दस्तक दे रही हैं ,इसलिए सुधी पाठकों से स्मृतियां सांझा करने के लिए लेखनी उतावली हो रही है। गर्मी की छुट्टियां और शरारतो का दौर शुरु, धूल की परवाह किए बिना आंधियों में अमिया चुनने दौड़ पड़ना,…

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