अकथ

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जीवन की देहरी पर सोलहवाँ बसंत उतरा और अचानक ही मधु की दुनिया के सारे रंग गुलाबी हो गए । सपनों का सावन आंखों में ठहर गया,खुशबू का मौसम सांसों में पैठ गया, दिन तितली हो गए, और जीवन अनूठा प्रेम राग। किसे भूलती है, वह पहली दस्तक, वह पहली आहट, वह प्रथम आकर्षण की अनुगूँज। शीत की स्याह रातों में, बादलों के पीछे आंख मिचौली करता चाँद और बचपन की चौखट के पार बिखरीं प्रीत कि वो केसर गंध। पहले हरदम गुमसुम सी रहने वाली धीर-गंभीर मधु के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान ने स्थाई निवास बना लिया था।
बोर्ड परीक्षाओं की तारीख घोषित हो चुकी थी, सभी की पढ़ाई जोर-शोर से चल रही थी। पढ़ाई के तनाव ने हम लोगों के चेहरे से मुस्कान छीन ली थी, ऐसे वक्त में किसी का हरदम मुस्कुराना किसी को भी चकित करने के लिए पर्याप्त था। मधु में आया परिवर्तन मेरी नजर से बच ना सका, मैंने एक दिन उससे पूछ ही लिया, कि आजकल बड़ी खुश नजर आ रही हो ?परीक्षा की तैयारी पूरी कर ली क्या? फिर मधु ने जो मुझे बताया, वह उस समय मेरे लिए बहुत बड़ी घटना थी। उसने मुझे बताया कि, उसे किसी से प्यार हो गया है उस युवक का नाम अमन है, वह भी उसे प्यार करता है, लेकिन दोनों में प्यार का इजहार करने की हिम्मत नहीं है। मैंने पूछा, कि ना तूने उससे कहा, ना उसने तुझसे कहा, फिर पता कैसे चला, कि प्यार हो गया है? मेरे इस भोले से प्रश्न पर वह जोर से हँसी और बोली कि प्यार महसूस किया जाता है, कहा नहीं जाता। तू नहीं समझेगी। मैंने उससे कहा, तू फेल हो जाएगी, तब समझेगी। पागल लड़की, यह कोई समय है, इस पागलपन में पड़ने का? लेकिन जिस पर प्रीत का रंग गहरा चढ़ गया हो उसके आगे सारी दुनिया के रंग धुंधले पड़ जाते हैं।
परीक्षायें खत्म हुई, गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थी, मधु ने भी उत्तम अंकों से बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। अब कॉलेज जाने की तैयारी में हम सभी व्यस्त हो गए थे। हम दोनों ने अलग अलग विषय लेने के कारण अलग अलग कॉलेज में प्रवेश ले लिया। अब हमारा मिलना छुट्टियों में ही हो पाता था। फिर भी दोस्ती अटूट रही। समय बिता रहा और मधु की अमन के प्रति किशोरावस्था में जो भावनाएं आकार ले चुकी थी, वह दृढ़ होती रही। इस बीच मेरे पिताजी का स्थानांतरण दूसरे शहर में हो गया और मैं अपने माता पिता भाई बहनों के साथ वाराणसी चली गई। दो साल तक मेरा संपर्क मधु से ना हो सका। तीसरे साल जब मेरे पास उसके घर से उसकी बड़ी बहन के विवाह का निमंत्रण पत्र आया, तो मैं खुशी से उछल पड़ी, कि चलो इसी बहाने मिलना हो पाएगा।
मैं बड़ी उत्साहित होकर जब उसकी बड़ी बहन के विवाह उत्सव की एक दिन पहले ही पहुँच गई, तो दृश्य कल्पना से परे था। मधु एक कमरे में स्वयं को बंद किए बैठी थी, उसकी मां ने मुझे देखते ही रोते हुए कहा, कि तुम मधु की सबसे अच्छी दोस्त हो, देखो ना सुबह से कमरे के अंदर से बाहर ही नहीं आई,पूछो उसे क्या परेशानी है? किसी को कुछ बता ही नहीं रही, शायद तुम्हें बता दे। मैंने उसकी मां को सांत्वना दिया, कि आप बिल्कुल चिंता ना करें, अब मैं आ गई हूं ना, मैं उसे संभाल लूंगी। मैंने कमरे के दरवाजे पर दस्तक दी और कहा, मधु मैं हूं वंदना, इतने सालों के बाद तुमसे मिलने आई हूँ, यदि तुमने दरवाजा नहीं खोला, तो मैं आज ही लौट जाऊंगी। और फिर धीरे से दरवाजा खुला, मुझे कमरे के अंदर खींच कर दरवाजा फिर से बंद कर लिया गया। मैंने लगभग चिल्लाते हुए कहा, मधु यह क्या पागलपन है? घर में शादी का ज़श्न है और तुम यहाँ, ऐसे? क्यों? मेरे इतना कहते ही मधु के सब्र का बाँध टूट गया और वह मुझसे लिपट कर जोर जोर से रोने लगी। मैंने घबराकर पूछा, कुछ बताएगी भी, हुआ क्या है? तब उसने जो रहस्योद्घाटन किया, उसे सुनकर तो मेरे भी होश उड़ गए। उसने मुझे बताया की उसकी दीदी की शादी उस लड़के से हो रही है, जिसके सपने देखकर वह युवा हुई थी, यानी अमन से। मैंने पूछा, कि यह सब गड़बड़ कैसे हुई, तो उसने कहा, कि बड़े भाई ने यह रिश्ता तय कर दिया, तो फिर मेरी हिम्मत नहीं हुई किसी से कुछ बताने की, वैसे भी हम दोनों ने एक दूसरे से तो कुछ कहा भी नहीं, बस सपने देखने में डूबे रहे और बाजी कोई और मार ले गया।
अब तो कुछ भी नहीं हो सकता, तुझे भी कसम है, तू किसी को कुछ नहीं बताएगी, वरना हमारी दोस्ती खत्म। मुझे धमका कर उसने चुप तो करा दिया, लेकिन दिमाग में जो आँधियां चलने लगी, वह तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।
जिसके लिए मधु वर्षों से मीराबाई बनी घूम रही थी, वहीं अब उसके घर में, उसके सामने बहन का पति बनकर आने जाने लगा। लेकिन कहते हैं ना, कि इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपता। वही हुआ जिसका डर था। एक दिन एकांत देख कर अमन ने भी अपने दिल की बात मधु से कह दी, कि मैं तो तुम्हें चाहता था, लेकिन तुम्हारी ओर से कोई प्रतिक्रिया ना पाकर मैंने यह रिश्ता मंजूर कर लिया, यह सोचकर कि, तुम्हें जब चाहूं देख तो सकूंगा। मुझे यदि पता होता, कि तुम भी मुझे चाहती हो, तो तुम्हारे अलावा किसी और से विवाह ना करता। विधि की विडंबना देखिए, जो इजहार-ए-मोहब्बत विवाह के पहले होना चाहिए था, वो अब बड़ी बहन से विवाह के बाद हो रहा था।
मधू की हालत तो ऐसी जैसे रेगिस्तान में प्यासी व्यक्ति के सामने पानी का पात्र तो हो, लेकिन हाथ पीछे बाँध दिए गए हो।
मधु के दर्द ने उसे गहरे अवसाद में पहुंचा दिया था। अमन से उसकी हालत देखी नहीं जा रही थी, उसने अपने सबसे अच्छे दोस्त से मधु की शादी तय कर दी। पहले तो वह राजी ना थी, लेकिन मैंने भी उसे बहुत समझाया, तब जाकर वह किसी तरह राजी हुई। तब तक मैं भी अपने शादीशुदा जीवन में रम चुकी थी। एक दिन अचानक मेरे घर पर मधु अपने नए नवेले पति के साथ आई, उसे बनारस घूमना था इसलिए मेरे घर तीन दिन रुकी रही। उन तीन दिनों में हम दोनों ने अपने कई वर्षों को जिया। रात में दो बजे तक बातें करते, फिर सुबह चार बजे ही टहलने निकल जाते। और फिर वो दिन भी आ गया, जब उसे वापस जाना था। जाते-जाते भी वह मुझे निर्देश दे गई, कि यदि अचानक उसे कुछ हो जाए, तो मैं उसकी कहानी अवश्य लिखूं। ताकि लोग अपने दिल की बात दिल में ना रखें, उचित समय पर खुलासा अवश्य करें, नहीं तो न स्वयं खुश रह सकते हैं, न दूसरे को खुश रख सकते हैं।
उसके जाने के दो महीने बाद ही मुझे सूचना मिली कि वह अस्पताल में अपनी अंतिम साँसे गिन रही है, मुझे तुरंत बुलाया गया था। बिना देर किए मैं जैसे तैसे जब तक अस्पताल पहुंची, तो वह अपनी अंतिम साँसे ले रही थी। अमन अपने हाथ में उसका हाथ लिए रोए जा रहा था, मुझे देखते ही मधु ने कहा कि वह थक गई है, खुद से लड़कर, अब विश्राम चाहती है, और उसने अपनी आँखें सदा के लिए मूँद ली।
बाद में अमर ने मुझे बताया, कि उसके पवित्र प्रेम की किसी ने अपवित्र व्याख्या करके उसके वैवाहिक जीवन में जहर घोल दिया था,रोज-रोज के तानों से बचने के लिए उसने आत्मदाह कर लिया। मैं बैठी बैठी सोच रही थी, ऐसी युवा मौतें अपने पीछे कितने अनुत्तरित प्रश्न छोड़ जाती हैं।
क्या हमारा समाज कभी इस बात की गंभीरता को समझ पाएगा,कि विवाह करने के लिए, प्रेम का होना एक मात्र शर्त होनी चाहिए, इसी से जीवन जीने योग्य रहता है, वरना इस दुनिया में भोग विलास में समय बिताने वाले तो बहुत हैं।

पिताजी के अंग्रेजी, उर्दू के कुहासे के बीच, मैंने अपनी माँँ के लोकगीतों को ही अधिक आत्मसात किया। उसी लोक संगीत की समझ ने मेरे अंदर काव्य का बीजा रोपण किया। "कवितानामा" मेरी काव्ययात्रा का प्रथम प्रयास नहीं है। इसके पूर्व अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशनार्थ प्रेषित की, लेकिन सखेद वापस आती रचनाओं ने मेरी लेखनी को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया था। लेकिन कोटिशः धन्यवाद डिजिटल मीडिया के इस मंच को, जिसने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनः एक प्रवाह, एक गति प्रदान कर लिखने के उत्साह को एक बार फिर से प्रेरित किया। पुनश्च धन्यवाद!☺️ वंदना राय

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